टिड्डी दल का आक्रमण एवं टिड्डी दल का फोटो
टिड्डी (Locust) कीट परिवार से आता है। इसे फसल डिड्डी (Harvest Locust) या लधुश्रृंगीय टिड्डा (Short Horned Grasshopper) भी कहते हैं। संपूर्ण संसार में इसकी छह प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यह प्रवासी कीट है और इसकी उड़ान क्षमता दो हजार मील तक पाई गई है। टिड्डियां आम तौर पर एकचारी होते हैं, जो परिस्थितियों के अनुसार अपनी आदत या स्वभाव बदल लेते हैं और जब इनकी संख्या काफी बढ़ जाती है तो इन्हें भोजन की कमी होने लगती है, भोजन की तलाश में ये काफी लंबी लंबी दूरी तय करते हैं। लंबी दूरी तक उड़ान भरने के लिए ये समूह बनाते हैं, इनका समूह फसलों पर धावा बोल देता है और उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर देते हैं।
टिड्डी का विकास
टिड्डी मिट्टी में कोष्ठ (cells) बनाकर रहती है, मादा टिड्डी इन्हीं कोष्ठों में अंडे देती है, जिसकी संख्या 20 से लेकर 100 अंडे तक हो सकती है। गरम जलवायु में 10 से लेकर 20 दिनों में अंडे फूट जाते हैं, लेकिन ठंढे प्रदेशों में अंडे जाड़े भर प्रसुप्त रहते हैं। आरंभ में टिड्डी के पंख नहीं होते जो वयस्क होने पर विकसित हो जाते हैं। शिशु टिड्डी का भोजन वनस्पति है और ये पाँच-छह सप्ताह में वयस्क हो जाती है। इस अवधि में चार से छह बार इसकी त्वचा बदलती है। वयस्क टिड्डियों में 10 से लेकर 30 दिनों में प्रौढ़ता आ जाती है और तब वे अंडे देती हैं। कुछ प्रजातियों में यह समय कई महीनों का होता है। टिड्डी का विकास आर्द्रता और ताप पर अत्यधिक निर्भर करता है।
टिड्डियों की अवस्थाएँ
टिड्डियों की दो अवस्थाएँ होती हैं, 1. इकचारी तथा 2. यूथचारी। प्रत्येक अवस्था में ये रंजन, आकृति, कायकी (Physiology) और व्यवहार में एक दूसरे से भिन्न होती हैं।
एकचारी के निंफ (nymph) का रंग और प्रतिरूप परिवर्तित होता रहता है। यह अपने पर्यावरण के अनुकूल अपने रंग का समायोजन कर सकता है।
यूथचारी के निंफ का रंग काला, पीला और प्रतिरूप निश्चित होता है। यह अधीर (nervous), सक्रिय और संवेदनशील होता है। इसका ताप भी ऊँचा होता है, क्योंकि इसका काला रंग अधिक विकिरण को अवशोषित करता है।
टिड्डियों का निवासस्थान
ये अपना निवासस्थान उन स्थानों पर बनाते हैं जहाँ जलवायु असंतुलित होता है और निवास के स्थान सीमित होते हैं। इन स्थानों पर रहने से अनुकूल ऋतु इनकी सीमित संख्या को आस पास के क्षेत्रों में फैलाने में सहायक होती है। प्रवासी टिड्डी के उद्भेद (outbreak) स्थल चार प्रकार के होते हैं:
1. कैस्पियन सागर, ऐरेल सागर तथा बालकश झील में गिरनेवाली नदियों के बालू से घिरे डेल्टा,
2. मरूभूमि से संलग्न घास के मैदान,
3. मध्य रूस के शुष्क तथा गरम मिट्टी वाले द्वीप, जो टिड्डी के लिए नम और अत्यधिक ठंडे रहते हैं। इस क्षेत्र में तभी बहुत संख्या में टिड्डियाँ एकत्र होती हैं जब अधिक गर्मी पड़ती है।
4. फिलिपीन के अनुपयुक्त, आर्द्र तथा उष्ण कटिबंधीय जंगलों को समय समय पर जलाने से बने घास के मैदान।
टिड्डियों का प्रवास काल
वयस्क यूथचारी टिड्डियाँ गरम दिनों में झुंडों में उड़ा करती हैं। उड़ने के कारण पेशियाँ सक्रिय होती हैं, जिससे उनके शरीर का ताप बढ़ जाता है। वर्षा तथा जाड़े के दिनों में इनकी उड़ानें बंद रहती हैं। मरुभूमि टिड्डियों के झुंड, ग्रीष्म मानसून के समय, अफ्रीका से भारत आते हैं और पतझड़ के समय ईरान और अरब देशों की ओर चले जाते हैं। इसके बाद ये रूस, एशिया, सिरिया, मिस्र और इजरायल में फैल जाते हैं। इनमें से कुछ भारत और अफ्रीका लौट आते हें, जहाँ दूसरी मानसूनी वर्षा के समय प्रजनन होता है।
लोकस्टा माइग्रेटोरिया (Locusta Migratoria) नामक यह टिड्डी एशिया तथा अफ्रीका के देशों में फसल तथा वनस्पति का नाश कर देती है।
टिड्डियों पर नियंत्रण के उपाय
टिड्डियों का उपद्रव आरंभ हो जाने के पश्चात् इसे नियंत्रित करना काफी कठिन हो जाता है। इसपर नियंत्रण पाने के लिए हवाई जहाज से विषैली औषधियों का छिड़काव, विषैला चारा, जैसे बेंजीन हेक्साक्लोराइड के विलयन में भीगी हुई गेहूँ की भूसी का फैलाव इत्यादि, उपयोगी होता है। अंडों को नष्ट करना, टिड्डियों को पानी और मिट्टी के तेल से भरी नाद में गिराकर नष्ट करना अन्य उपाय हैं, पर ये उपाय काफी खर्चीले हैं, साथ ही अंतररा्ट्रीय सीमाओं के कारण भी यह आसन नहीं है। अत: अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ही इनका आयोजन हो सकता हैं।
भारत में टिड्डी दल का आक्रमण
भारत जब कोरोना वायरस महामारी से जूझ रहा है ऎसे समय में टिड्डियों ने फसलों पर धावा बोल दिया है जो इस दशक का सबसे बड़ा हमला है। टिड्डियों ने मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात और पंजाब में फसलों को काफी नुकसान पहुंचाया है, जो भारत के मुख्य अन्न उत्पादक राज्य हैं। ऐसे में, देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना चिंता का विषय बन गया है।
भारत में आने वाले टिड्डियों का प्रजनन एवं विकास मूल रूप से ईरान एवं पाकिस्तान में होता है। आम तौर पर टिड्डियों का भारत में प्रवेश मानसून के आगमन के साथ जून-जुलाई के महीने में देखा जाता था लेकिन इस साल अप्रैल से इनका आतंक शुरू हो गया है, जिसका मुख्य कारण है पाकिस्तान द्वारा टिड्डियों को नष्ट करने हेतु किसी भी प्रयास की कमी, जिसने टिड्डियों को साल भर फलने फूलने का मौका दिया।
टिड्डियों पर नियंत्रण के उद्देश्य से भारत ने पहल की है और इसी साल मार्च में, दक्षिण पश्चिम एशिआई देश जैसे भारत, पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान का एक सम्मेलन आयोजित किया जिसमें टिड्डियों पर नियंत्रण के लिए संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता पर जोर देने पर सहमति जताई गई।